
रायपुर। प्रदेश में हर्बल गुलाल का निर्माण अब तक फुलों के जरिए किया जाता रहा है, लेकिन इस बार प्राकृतिक रंगों में सब्जियों के औषधीय गुणों का भी समावेश होने जा रहा है। पहली बार प्रदेश में पालक भाजी, चुकंदर, हल्दी और अदरक जैसे बेहद प्राकृतिक और औषधीय गुणों से भरपूर सब्जियों से गुलाल का निर्माण किया जा रहा है। प्रदेशभर में 400 से अधिक महिला समूहों द्वारा हर्बल गुलाल तैयार किया जा रहा हैं। हर जिले में फूल व सब्जियों के पैदावार के अनुसार महिलाएं रंग बनाने में जुट गई हैं।
इसकी मांग भी बाजार में पिछले वर्ष से दोगुना है। कृषि वैज्ञानिक डाॅ. नारायण साहू का कहना है, सभी तरह के प्राकृतिक चीजों से गुलाल बनाया जा सकता हैं। दंतेवाड़ा में पांच साल पहले हल्दी और अदरक से हर्बल गुलाल बनाने की शुरुआत हुई थी। अब इस प्रयोग को सभी विज्ञान केंद्रों में किया जा रहा है। हर्बल गुलाल में नए-नए सामग्रियों का प्रयोग किया जा रहा है, जिसमें इस बार फुलों के साथ सब्जियां भी हैं। इंदिरा गांधी कृषि विवि के मदद से विज्ञान केंद्र से जुड़ी महिलाएं फुलों और सब्जियों से हर्बल गुलाल तैयार रही हैं। अन्य गुलाल की तुलना में यह काफी सस्ता तो है ही, फुल और सब्जियों के औषधीय गुण इसे लाभकारी भी बनाते हैं।
रंगों के लिए सब्जियों का प्रयोग
इंदिरा गांधी कृषि विवि के विज्ञान केंद्र से जुड़ी महिलाओं के मुताबिक गुलाल में रंग के लिए सब्जियों का प्रयोग किया जा रहा है। हरा रंग के लिए पालक भाजी और मेहंदी का प्रयोग हो रहा है। जबकि लाल रंग के लिए चुकंदर और लालभाजी का उपयोग किया जा रहा है। जशपुर क्षेत्र में महिलाएं इस बार महुआ के फूल से भी गुलाल तैयार कर रही हैं। इससे पहले महुआ के अचार, लड्डू और दीए बनाने में समूहों को काफी फायदा हुआ है। स्वयं सहायता समूह की सरोज का कहना है, महुआ फुल की खुशबू से अब गुलाल भी महकेगा। इसका प्रति किलो पैकेट 200 में बाजार में मिलेगा। समूह को लोकल मार्केट से हर्बल गुलाल की डिमांड आ रही है। हजार किलो गुलाल का डिमांड ग्राम मालीडीह की महिला समूह को मिल गया है।
8 रंगों में उपलब्ध होगा गुलाल
प्रदेशभर में एक महीने पहले से हर्बल गुलाल बनाने का काम शुरु हो चुका है। महिलाएं विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लेकर समूह बनाकर काम कर रही हैं। दंतेवाड़ा विज्ञान केंद्र के डॉ. साहू का कहना है, फल, फुल और सब्जियों व लकड़ियों से लाल, केसरिया, पीला, गुलाबी, हल्का हरा, गाढ़ा हरा, आसमानी और नारंगी रंग में तैयार हो रहा है। महिलाएं इसे हाथों से तैयार रही रही हैं। हर्बल गुलाल के दाम और भी कम हो सकते हैं, अगर महिलाएं फल, सब्जियों की खेती करें और रंग बनाने के लिए इसका उपयोग करें। प्राकृतिक चीजों से बने गुलाल से त्वचा को नुकसान नहीं होता।
डिमांड अधिक, सरकारी दफ्तरों से मिला ऑर्डर
महिला स्वसहायता समूहों को गुलाल के लिए बाजार का संकट भी नहीं है। इसीलिए सभी जिलों में समूह की महिलाएं बड़े पैमाने पर गुलाल बना रही हैं। खुले बाजार के साथ ही सरकारी कार्यालयों, मंत्रियों, अधिकारियों से भी इसके ऑर्डर मिल रहे हैं। मंदिरों और धार्मिक व सामाजिक संस्थानों ने इसके लिए पहले से ही संपर्क कर लिया है। इन्हीं स्थानों पर काफी मात्रा में गुलाल खप जाएगा। इसके अलावा शहर के प्रमुख सार्वजनिक स्थानों पर भी स्टाल लगाए जाएंगे, जहां आम लोगों को यह उपलब्ध हो सकेगा।