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कार्यक्रम के अनेक छायाचित्र
- प्रत्येक वर्ष 17 सितम्बर कोसम्पूर्ण भारत में विश्वकर्मा जयन्ती मनायी जाती है, आज विश्वकर्मा जयन्ती के दिन सहायक अभियन्ता (विद्युत विभाग) शंकर नगर जोन खम्हारडीह ने भी विश्वकर्मा जयन्ती मनायी।

- गौरतलब है कि सर्वप्रथमविश्वकर्मा भगवान के तैलचित्र की पूजा कर व माल्या अर्पण के साथ शुरू की गई, पश्चात वाहन की पूजा वाहन चालक से करवाने के बाद सब स्टेशन में पूर्व से स्थापित ट्रान्सफार्मर की पूजा प्रशान्त कुमार (सहायक अभियन्ता) ने की एवम सब स्टेशन कन्ट्रोल रूम में लगे पेनल बोर्ड की पूजा वहा के ऑपरेटर द्वारा की गई। अन्त में विश्वकर्मा भगवान की आरती सभी कार्यालीन कर्मचारीयों द्वारा की गई। आरती उपरान्त सभी उपस्थित जनों के बीच प्रसाद वितरण किया गया।
- इस अवसर पर प्रशान्त कुमार (सहायक अभियन्ता), नामदेव (सहायक अभियन्ता), प्रिन्स मेश्राम (कनिष्क अभियन्ता), एस.पी.मिश्रा व वीरेन्द्र वर्मा (सब-स्टेशन ऑपरेटर ), कार्तिक निर्मलकर शिव वर्मा के. जय प्रकाश चेतन निषाद ललित साहू (सभी लाईन मेन ) के साथ अन्य कार्यालय के कर्मचारी व लाईन मेन की उपस्थित में जयन्ती विधि-विधान से मनायी गई एव सभी ने बड़े ही उत्साह से अपनी हिस्सेदारी दी। कार्यक्रम के समापन के पूर्व सहायक अभियन्ता नामदेव के आगमन हुआ तथा उन्होने भी विश्वकर्मा भगवान की पूजा कर अपनी आस्था प्रकट की।

- आपको यह भी बताते चले कि भारत में प्रत्येक दिन त्योहारों के रूप में लोगों के लिये महत्वपूर्ण होता है। भारत के हर कोने में कभी ना कभी किसी ना किसी तरह से त्यौहार मनाया जाता है। जैसा कि सभी को पता है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष वाला देश है। यहां अलग अलग धर्म के लोग रहते हैं और अपनी इच्छा अनुसार अपने त्यौहार को मनाते हैं। ऐसे ही सनातन धर्म में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है और उन्हें देवता समान माना जाता है।भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता माना जाता है। तकनीकी जगत के भगवान विश्वकर्मा का त्यौहार प्रतिवर्ष कन्या संक्रांति के दिन मनाया जाता है जोकि अमूमन 16 या 17 सितंबर को पड़ती है।
- इस साल भगवान विश्वकर्मा का त्यौहार 17 सितंबर को मनाया गया। आम बोलचाल की भाषा में इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्म भादो माह में हुआ था। हर साल 17 सितंबर को उनके जन्मदिवस को विश्वकर्मा विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इनको भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। विश्वकर्मा को दुनिया में सबसे पहले वास्तु और इंजीनियरिंग की उपाधि दी गई है। यदि आप भी अपने कारोबार को आगे बढ़ाना चाहते हैं और अपने घर में सुख समृद्धि लाना चाहते हैं। तो आप भी विश्वकर्मा जी का त्यौहार जरूर बनाए। तो चलिए हम आपको बताते हैं कि किस तरह से आप विश्वकर्मा जयंती मना सकते हैं।
क्यों होती है विश्वकर्मा पूजा
- कहा जाता है, कि यह देवताओं के अस्त्र-शस्त्र महल और आभूषण आदि बनाने का काम करते थे। भगवान विश्वकर्मा की पूजा के दिन फैक्ट्रियों और ऑफिसों में लगी हुई मशीनों की पूजा की जाती है। ताकि व्यक्ति का व्यापार और ज्यादा तरक्की करें।
इन राज्यों में होती है पूजा
- यदि आप पहली बार विश्वकर्माजी के बारे में पढ़ रहे हैं या जानने की कोशिश कर रहे हैं तो आपको लग रहा होगा कि यह ज्यादा जगह नहीं मनाई जाती। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि राज्यों में की जाती है। जो भी लोग कारखाने फैक्ट्री या फिर मशीनों से संबंधित कारोबार में काम करते हैं उनका यह मानना है कि विश्वकर्मा जी की पूजा करने से मशीनें जल्दी खराब नहीं होती और अच्छे से काम करती हैं, साथ ही मशीन काम में कभी भी धोखा नहीं देती। इस दिन बड़ी फैक्ट्री हो या छोटा कारोबार हर जगह लोग अपने काम को रोक कर अपनी मशीनों की साफ सफाई करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। ताकि वह अपने काम में बरकत पा सकें।
विश्वकर्मा ने किया था निर्माण
- अब आपके मन में यह विचार आ रहा होगा कि हम विश्वकर्मा जयंती क्यों मनाते हैं? जैसे की हम और त्यौहारों के पीछे उनका इतिहास पढ़ते आए हैं तो मन में यह इच्छा जरूर आ रही होगी कि आखिर विश्वकर्मा डे या जयंती क्यों मनाई जाती है? तो चलिए हम आपको बताते हैं, दरअसल मान्यता यह है कि स्वर्ग के राजा इंद्र का अस्त्र वज्र का निर्माण विश्वकर्मा ने ही किया था। साथ में जगत के निर्माण के लिए विश्वकर्मा ने ब्रह्मा की सहायता की थी और संसार की रूप रेखा का नक्शा तैयार किया था। इस संसार को बनाने में जितनी ब्रह्मा जी की कृपा है उतना ही विश्वकर्मा जी की मेहनत है।
- आपको यह जानकर और ज्यादा हैरानी होगी कि ओडिशा में स्थित भगवान जगन्नाथ समेत बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण भी विश्वकर्मा ने किया था और भी बड़े-बड़े कारनामे विश्वकर्मा के नाम लिखे हुए हैं। माता पार्वती के कहने पर ही विश्वकर्मा ने सोने की लंका का निर्माण किया था। जब हनुमान जी ने सोने की लंका जला दी थी। तो रावण ने दोबारा विश्वकर्मा को बुलाकर लंका का पूर्ण निर्माण करवाया था। साथ ही बाल गोपाल नंद के लाल श्री कृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा ने द्वारका नगरी का निर्माण किया था, ऐसा कहा जाता है।